तोरी यानी स्पंज लौकी – भारत के हर हिस्से में पाई जाने वाली यह हरी सब्ज़ी आयुर्वेद की नज़र से जितनी आम लगती है, उतनी ही आम भी है। चाहे व्रत हो, बीमारी हो, पेट की समस्या हो या लिवर की देखभाल – तोरी हर स्थिति में एक आयुर्वेदिक वरदान है। जहाँ आधुनिक विज्ञान इसे कम कैलोरी वाले आहार का हिस्सा मानता है, वहीं आयुर्वेद ने सदियों पहले इसे शीतलता, पाचन शक्ति बढ़ाने और मल को मुलायम बनाने वाले गुणों से भरपूर बताया है।
- संस्कृत नाम – कषायफल, तुम्बीफल
- रस (स्वाद) – मधुर (मीठा), कषाय (कसैला)
- गुण – लघु (हल्का), स्निग्धा (कोमल)
- विपाक – मीठा
- वीर्य (प्रकृति) – शीतल (ठंडा)
- दोषों पर प्रभाव – पित्त और वात को शांत करता है
भावप्रकाश निघंटु में इसे शीतल, त्रिदोषहर और कृमिनाशक बताया गया है। चरक संहिता में इसे पाचक और रक्त शोधक बताया गया है।
आयुर्वेदिक दृष्टि से तोरी अमूल्य है? 1. पाचन तंत्र का मित्र – तोरी अग्नि को उत्तेजित किए बिना उसे शांत करती है। अपच, गैस, कब्ज, एसिडिटी में लाभकारी। 2. शरीर की गर्मी दूर करती है – गर्मियों में शरीर में पित्त बढ़ जाता है, तोरी इसका आसान उपाय है।
3. तोरी लीवर और पीलिया में अमृत के समान है। यह लीवर की सूजन और कमजोरी को दूर करने में सहायक है।
4. यह मूत्र संबंधी विकारों में उपयोगी है।
5. यह मूत्रवर्धक है। यह गुर्दे की रुकावट, जलन या गर्मी को दूर करता है।
5. यह मोटापा कम करने में मदद करता है। इसकी कम कैलोरी और उच्च फाइबर गुण इसे वजन घटाने के लिए आदर्श बनाते हैं।
6. यह त्वचा के लिए वरदान है। यह रक्त को शुद्ध करता है, जिससे मुंहासे, झाइयां और त्वचा की एलर्जी से राहत मिलती है।
घरेलू उपचार – तोरी उपचार
पीलिया में तोरी का काढ़ा:
• 100 ग्राम तोरी के टुकड़ों को पानी में उबालकर छान लें।
• इस पानी को दिन में दो बार पिएं।
• लाभ: लीवर की सूजन, पीलिया और थकान में लाभकारी।
कब्ज में तोरी का रस:
• ताज़ी तोरी को कद्दूकस करके छान लें और 1/4 कप रस निकाल लें। इसे सुबह खाली पेट पिएँ।
• लाभ: पेट साफ़ करता है, मल को मुलायम बनाता है।
मुँह के छालों के लिए तोरी से गरारे करें:
तोरी के छिलके उबालकर, पानी छानकर ठंडा करके गरारे करें।
• लाभ: छालों, जलन और मुँह की सूजन से राहत।
मधुमेह में हल्की तीखी तोरी की सब्जी:
• आलू या बेसन डाले बिना हल्के मसाले डालकर तोरी की सब्जी बनाएँ।
• लाभ: पाचन क्रिया ठीक रखता है, शुगर कंट्रोल में मदद करता है।
तोरी को आहार में कैसे शामिल करें?
इसे केवल दोपहर के भोजन में ही लें क्योंकि इसकी तासीर ठंडी होती है। • ज़्यादा तेल और मसाले न डालें – वरना इसके गुण नष्ट हो जाते हैं। तोरी को दाल में डालकर बनाएँ, इससे दाल आसानी से पच जाती है। तोरी के छिलकों से बनी चटनी भी बहुत फायदेमंद होती है, इसमें पाचन और त्वचा के लिए ज़रूरी तत्व होते हैं।
तोरी कब न खाएँ?
• सर्दी, खांसी, वात-वृद्धि जैसी अत्यधिक ठंडक वाली बीमारियों में, इसे सीमित मात्रा में या डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही लें। रात के खाने में तोरी न खाएँ – इसकी ठंडी तासीर अपच का कारण बन सकती है।
योग और तोरी: एक संयोजन
अगर आप अपने आहार में तोरी को शामिल करते हैं और वक्रासन, पवनमुक्तासन या मंडूकासन जैसे योग भी करते हैं – तो पाचन तंत्र और मेटाबॉलिज़्म दोनों में काफ़ी सुधार होगा।
निष्कर्ष:
तोरी सिर्फ़ एक सब्ज़ी नहीं, बल्कि शरीर को संतुलित रखने वाली एक आयुर्वेदिक औषधि है। इसे अपने दैनिक आहार में शामिल करके आप कई बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं। इसका सेवन गर्मी, बरसात और पित्तज रोगों में संजीवनी की तरह काम करता है।