अश्वगंधारिष्ट! आयुर्वेद का ब्रह्मास्त्र “मानसिक, शारीरिक और यौन स्वास्थ्य की एकमात्र औषधि”

अश्वगंधारिष्ट, आयुर्वेद का एक प्रमुख अरिष्ट कल्प है जो मानसिक तनाव, दुर्बलता, अनिंद्रा, थकावट, कमजोरी, स्नायु रोग और पुरुषों में वीर्य की कमी जैसे रोगों में विशेष लाभकारी माना गया है। यह न केवल एक रसायन है बल्कि यह एक ओजवर्धक, बलवर्धक और वातहर औषधि है।

यह औषधि विशेष रूप से वात दोष को नियंत्रित करती है और मन एवं मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाती है। इसका नाम ही अपने गुण को दर्शाता है -अश्वगंधा (Withania somnifera ), यानि वह औषधि जो घोड़े जैसी ताकत देती है।

अश्वगंधारिष्ट की आयुर्वेदिक दृष्टि से:

रसं – मधुर, कषाय

गुण – गुरु, स्निग्ध

वीर्यं – उष्ण

विपाक – मधुर

दोषों पर प्रभाव – वात एवं कफ शामक

मुख्य कार्य – बलवर्धक, स्मृतिवर्धक, कामशक्ति वर्धक, वातनाशक

मुख्य लाभ:

 मानसिक तनाव और अवसाद में राहत

अश्वगंधारिष्ट मानसिक संतुलन बनाने में मदद करता है। यह एक नैचुरल एंटी-डिप्रेसेंट के रूप में कार्य करता है।

 अनिद्रा की समस्या में असरदार

अश्वगंधा के साथ अन्य मस्तिष्क को शांत करने वाली औषधियों का संयोग नींद को सुधारता है।

 बल और मांसपेशियों की शक्ति बढ़ाता है

यह मसल्स को मज़बूती देता है और थकावट दूर करता है। ‘प्रजनन स्वास्थ्य में उपयोगी

शुक्रधातु की वृद्धि करता है, नपुंसकता, शीघ्रपतन, और शुक्राणु दोषों में असरदार है।

बुज़ुर्गों में स्नायु शक्ति और स्मृति सुधारने वाला • यह वृद्धावस्था में दुर्बलता, कंपकंपी, और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं में सहायक रसायन है।

वज़न बढ़ाने में सहायक

शारीरिक दुर्बलता और पतले शरीर वालों के लिए यह औषधि वज़न बढ़ाने में मदद करती है।

अश्वगंधारिष्ट के घटक:

अश्वगंधा मूल: 10 भाग मंजिष्ठा: 1 भाग हरड़, बहेड़ा, आंवला : 1-1 भाग अर्जुन छाल 1 भागवचा, शंखपुष्पी, यष्टिमधुः 1-1 भाग इलायची, तेजपत्ता, लौंग: 1-1 भाग गुड़: 20 भाग पानी (काढ़ा बनाने हेतु): 64 भाग धातकी पुष्प (किण्वन हेतु): 1 भाग

सेवन विधिः

15 से 25 ml तक, बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद दिन में दो बार लें। बच्चों को चिकित्सकीय परामर्श से दें।

घर पर अश्वगंधारिष्ट बनाने की विधि:

ऊपर दिए गए सभी सूखे घटकों को मोटा-मोटा कूट: लें।  इन्हें पानी में डालकर धीमी आँच पर उबालें जब तक यह चौथाई भाग ना रह जाए ,इस काढ़े को छानकर ठंडा करें और फिर उसमें गुड़ मिलाएं। अब इसमें धातकी पुष्प डालें और एक साफ़ मिट्टी या काँच के बर्तन में 30 दिनों तक ढक्कन बंद करके रखें। 30 दिनों बाद छानकर काँच की बोतल में भर लें। यह अश्वगंधारिष्ट 6 महीने तक सुरक्षित रहता है।

विशेष सुझाव:

इसका सेवन शुद्ध घी, दूध और पौष्टिक भोजन के साथ करने पर उत्तम लाभ मिलता है।

थकावट, शारीरिक कमजोरी, ब्रेन वीकनेस, स्पर्म की कमी, और मानसिक चिंता में यह अमृत तुल्य है।

महिलाओं में भी यह मानसिक तनाव, दुर्बलता और थकावट में लाभकारी है, परंतु गर्भवती महिलाएं इसका सेवन चिकित्सक से परामर्श लेकर करें।

निष्कर्ष: 

अश्वगंधारिष्ट आयुर्वेद का एक बहुमूल्य टॉनिक है जो मानसिक, शारीरिक और यौन स्वास्थ्य को संपूर्ण रूप से संबल प्रदान करता है। यह मात्र एक औषधि नहीं, एक आयुर्वेदिक जीवनशैली का हिस्सा है जो रोगों को दूर करने के साथ-साथ शरीर को सशक्त और मस्तिष्क को शांत करता है।

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