आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग दांतों की देखभाल पर उतना ध्यान नहीं दे पाते, जिसके कारण दांतों में सड़न, पायरिया, मसूड़ों से खून आना और सांस की बदबू जैसी समस्याएँ आम हो गई हैं। मुँह की सेहत केवल सुंदर मुस्कान के लिए नहीं बल्कि पूरे शरीर के स्वास्थ्य से जुड़ी है। आयुर्वेद में “मुखरोग” (दाँत और मसूड़ों से संबंधित रोगों) का विस्तृत वर्णन किया गया है और इन्हें रोकने के लिए प्राकृतिक, सरल और प्रभावी उपाय बताए गए हैं।
आयुर्वेद में दांतों की देखभाल का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार, दांत और मसूड़े केवल पाचन का पहला चरण नहीं हैं बल्कि शरीर की संपूर्ण ऊर्जा और बल का प्रतीक हैं।
दांतों की जड़ें अस्थिधातु और मज्जाधातु से जुड़ी होती हैं।
इसलिए दांतों की मजबूती का संबंध हड्डियों और अस्थि-स्वास्थ्य से है।
“चरक संहिता” और “सुश्रुत संहिता” में दांतों को स्वस्थ रखने के लिए दंतधावन (दातुन), गंडूष (कुल्ला) और कवला (तेल खींचना) जैसी दिनचर्याओं का उल्लेख मिलता है।
आयुर्वेदिक दंतधावन (Tooth Cleaning)
आयुर्वेद में सुबह सूर्योदय से पहले दांतों की सफाई करने की सलाह दी गई है। इसके लिए नीम, बाबूल, खैर, करंज, अर्जुन या आम्र की दातुन का उपयोग श्रेष्ठ माना गया है।
दातुन के फायदे:
नीम की दातुन से दांतों का पीला पन और कीड़े दूर होते हैं।
बाबूल की दातुन मसूड़ों को मजबूत करती है।
खैर और अर्जुन की दातुन से दांतों में चमक आती है और बदबू दूर होती है।
गंडूष और कवला (Oil Pulling Therapy)
आयुर्वेद में तेल से कुल्ला करना यानी गंडूष और कवला दांतों व मसूड़ों की देखभाल का विशेष उपाय है।
तिल का तेल या नारियल तेल मुँह में लेकर 2-3 मिनट घुमाकर थूक दें।
यह मसूड़ों को मजबूती देता है, दांतों की जड़ों को पोषण पहुँचाता है और मुंह की बदबू दूर करता है।
नियमित तेल खींचने से दांतों पर जमी मैल साफ होती है और कैविटी की संभावना कम होती है।
दांतों की देखभाल के लिए आयुर्वेदिक पाउडर
आयुर्वेदिक ग्रंथों में विभिन्न जड़ी-बूटियों से बने दंतमंजन का वर्णन है।
त्रिफला चूर्ण – दांतों की सफाई और चमक के लिए।
लौंग और काली मिर्च – दांत दर्द और सूजन में राहत।
मुलेठी पाउडर – मसूड़ों से खून आना रोकता है।
हरद और बहेड़ा – पायरिया और बदबू में लाभकारी।
दांतों के लिए घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
नमक और सरसों का तेल: मसूड़ों पर हल्के हाथों से मलने से खून आना बंद होता है और मसूड़े मजबूत होते हैं।
लौंग का तेल: दांत दर्द या कैविटी में रुई पर लगाकर प्रभावित जगह पर रखने से तुरंत राहत।
हल्दी और सरसों का तेल: मसूड़ों की सूजन कम करने के लिए मालिश में उपयोगी।
गिलोय का रस: रोज़ाना सेवन करने से दांत और हड्डियाँ मजबूत रहती हैं।
त्रिफला क्वाथ: कुल्ला करने से दांतों का पीलापन कम होता है।
आधुनिक शोध और आयुर्वेद का मेल
वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि नीम, लौंग और त्रिफला जैसे आयुर्वेदिक तत्वों में एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और एन्टी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। यही कारण है कि ये पायरिया, कैविटी और मसूड़ों की समस्याओं से बचाते हैं। तेल खींचने की पद्धति (Oil Pulling) को भी अब वैज्ञानिक रूप से दांतों और मसूड़ों के लिए लाभकारी माना जा रहा है।
क्या न करें?
ज्यादा मीठे और कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन।
ब्रश करने के बाद तुरंत चाय/कॉफी पीना।
अत्यधिक केमिकल युक्त टूथपेस्ट का लगातार उपयोग।
तंबाकू, पान-मसाला और धूम्रपान – दांत और मसूड़ों के सबसे बड़े दुश्मन।
निष्कर्ष
आयुर्वेद हमें बताता है कि दांतों की देखभाल केवल ब्रश करने से नहीं बल्कि दिनचर्या, खानपान और प्राकृतिक औषधियों के सही उपयोग से होती है। अगर हम दातुन, तेल खींचना और आयुर्वेदिक नुस्खों को रोज़ाना अपनाएँ तो न केवल हमारे दांत सफेद और मजबूत रहेंगे बल्कि जीवनभर हमें बड़ी दंत-समस्याओं से भी छुटकारा मिलेगा।
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