त्रिजात: एक सशक्त त्रिविध औषधि संयोजन इला, त्वक और पत्र का रहस्य !

आयुर्वेद के अनमोल खजाने में एक अत्यंत प्रभावशाली और पारंपरिक औषधीय योग है – त्रिजात (Trijata)। यह तीन औषधीय मसालों – इला (छोटी इलायची), त्वक (दालचीनी) और पत्र (तेजपत्ता) से मिलकर बना होता है। त्रिजात न केवल पाचन, श्वसन और चयापचय क्रियाओं को सुधारता है बल्कि वात-कफ दोष को संतुलित करता है। यह योग आयुर्वेद में उष्ण वीर्य, दीपन और कफहर गुणों के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
त्रिजात की औषधियाँ:
1. इला (Elā – छोटी इलायची): स्वाद में मधुर और रुचिकर। कफ एवं वात को संतुलित करती है। पाचन, सांस की समस्या और हृदय रोग में लाभकारी ।
2. त्वक (Tvak – दालचीनी): उष्ण वीर्य, स्वाद में कटु । रक्त शोधक, श्वसन समस्याओं में उपयोगी। मधुमेह में प्रभावी और जठराग्नि प्रदीप्त करने वाली ।
3. पत्र (Patra – तेजपत्ता): स्वाद में कटु व तिक्त । वात- कफशामक, एंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर खांसी, पेट दर्द और हृदय के लिए उपयोगी।
भावप्रकाश निघंटु, चरक संहिता और कश्यप संहिता में त्रिजात के उपयोग व गुणों का विस्तार उल्लेख मिलता है। इसे विशेष रूप से शिशु रोग, कफज विकारों, और अग्निमांद्य (कमजोर पाचनशक्ति) में अनुशंसित किया गया है।
त्रिजात योग की मात्रा:
• इला (छोटी इलायची) : 1 भाग
• त्वक (दालचीनी): 1 भाग
• पत्र (तेजपत्ता): 1 भाग
त्रिजात के प्रमुख लाभ:
1. पाचन शक्ति में वृद्धिः त्रिजात के सभी घटक अग्निवर्धक हैं जो भूख को बढ़ाते हैं और अपचन, गैस, अम्लपित्त में राहत देते हैं।

2. कफ नाशक और श्वसन रोगों में लाभकारी : खांसी, दमा, जुकाम ‘में त्रिजात विशेष लाभ देता है। दालचीनी और तेजपत्ता बलगम को ढीला करके बाहर निकालने में मदद करते हैं।

3. मधुमेह में सहायकः त्वक का उपयोग आयुर्वेद में मधुमेह नियंत्रण के लिए प्राचीन काल से होता रहा है। यह ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

4. हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद: इला और पत्र दोनों ही रक्तचाप और हृदय की गति को नियंत्रित रखते हैं। हृदय को मजबूती देने के लिए त्रिजात का प्रयोग लाभकारी माना गया है।

5. त्वचा रोगों में लाभकारी: त्वक और पत्र के एंटीसेप्टिक गुण त्वचा की जलन, एलर्जी व कील-मुहांसे में लाभ देते हैं।

घरेलू नुस्खे:
अपच व गैस में: 1/2 चम्मच त्रिजात चूर्ण को शहद के साथ लें। सर्दी-खांसी में: 1/2 चम्मच त्रिजात चूर्ण को 1 कप पानी में उबालकर, छानकर गुनगुना पीएं। इच्छा हो तो शहद मिलाएं। मधुमेह में: 1/2 चम्मच त्रिजात चूर्ण को सुबह खाली पेट गर्म पानी के साथ लें।
फटी एड़ियों में: त्रिजात को नारियल तेल में मिलाकर गुनगुना करके एड़ियों पर लगाएं।
सभी को चूर्ण रूप में पीस लें और समान मात्रा में मिलाकर रखें।
वयस्कों के लिए सामान्य सेवन मात्रा:
3 से 5 ग्राम चूर्ण, शहद या गर्म पानी के साथ, दिन में एक या दो बार।
बच्चों के लिए: 1 ग्राम से कम, केवल वैद्य की सलाह पर ।
उष्ण प्रकृति के कारण अधिक सेवन ना करें, विशेषकर गर्मियों में। गर्भवती महिलाएं व स्तनपान कराने वाली माताएं उपयोग से पहले वैद्य से परामर्श लें।
अगर आपको एसिडिटी या गर्म प्रकृति है, तो सीमित मात्रा में लें।

निष्कर्ष:
त्रिजात एक सशक्त त्रिविध औषधि संयोजन है जो घर के रसोईघर से सीधे आपकी सेहत का साथी बन सकता है। पाचन से लेकर हृदय और मधुमेह तक इसके लाभ बहुआयामी हैं । त्रिजात न केवल शरीर को रोगमुक्त बनाता है बल्कि जीवन की गुणवत्ता भी बढ़ाता है।

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